osho in hindi
रजनीश वाद जैसी चीज न कभी थी, और न कभी होगी। मैं वादों का दुश्मन हूं। इन्हीं वादों ने दुनिया को बरबाद किया है। आखिर इस्लाम क्या है? आखिर ईसाइयत क्या है? अखीर जैनिज्म क्या है? बौधिज्म क्या है? ये किन्हीं व्यक्तियों की चेष्टाए है सारी दुनिया को अपनी लपेट में लेने की। ये सब हार गए। और अपनी हार में सारी दुनियां को देगी में पटक गये।
मैं कोई ऐसा पाप करने को राज़ी नहीं हूं। मैंने दुनिया को अपने घेरे में नहीं चाहता। मैं चाहता हूं कि दुनिया मुझे अपने घेरे में ले। भूल जाए मेरा नाम, भूल जाए मेरा पता, अपनी याद करे। मैं अपने पीछे कोई धर्म नहीं छोड़ जाना चाहता हूं। मेरी एक ही प्रार्थना है उन लोगों से जो मुझे प्रेम करते है, कि उनके प्रेम का एक ही सबूत होगा। कि वे मुझे क्षमा कर देंगे और मुझे सदा के लिए भूल जाए। हां, अगर कोई सत्य मुझसे प्रकट हुआ हो। तो उस सत्य को पी लें–जी भर कर पी लें। लेकिन वह सत्य मेरा नहीं है। सत्य किसी का भी नहीं है। सत्य तो बस अपना है। उस पर कोई लेबल नहीं है। कोई विशेषण नहीं है। इसलिए मैं तो धुल जाना चाहता हूं। मिल जाना चाहता हूं। मिट जाना चाहता हूं। यूं की मेरे पैरों के निशान भी जमीन न रह जाएं कि कोई उनका अनुसरण करे। जैसे पक्षी आकाश में उड़ते हैं। लेकिन उनके पैरों के कोई चिन्ह आकाश में नहीं छूटते। मैं भी कोई चिह्न अपने पीछे नहीं छोड़ना चाहता हूं।
मैं चाहता हूं कि मनुष्यता सत्य को, प्रेम को, करूणा को, ध्यान को, अस्तित्व को—इनको प्रेम करे। मैं तो कल नहीं था। कल नहीं हो जाऊँगा। इस अस्थिर पंजर को मूर्ति मत बना लेना। और मैं किसी को अपनी लपेट में नहीं लेना चाहता हूं। इस संबंध में यह भी तुम्हें कह दूँ कि जो लोग दूनिया में इस चेष्टा में संलग्न होते है। के लोग उनके अनुयायी हो जाए। लोग उनकी लपेट में आ जाए,ये कोई भले लोग नहीं होते। ये अहंकारी हैं। ये अपने अहंकार के शिखर को बड़े से बड़े करना चाहते है। ये तुम्हारे कंधों पर खड़े होकर आकाश के तारों को छूना चाहते है।
मैं तो यूं मिट जाना चाहता हूं कि जैसे कभी था ही नहीं।
मैं तो यूं मिट जाना चाहता हूं कि जैसे कभी था ही नहीं। सिर्फ वहीं रह जाए जो सदा था। सदा है और सदा रहेगा। और उसकी ही तुम लपेट में रहो। मुझसे क्या लेना देना? मेरा क्या मूल्य है।
मेरी बातों में लोग पशो पेश में पड़ जाते है। क्योंकि मैंने जो कल कहा था वह मैं शायद आज नहीं कहूंगा। और जो आज कह रहा हूं वह कल नहीं कहूंगा। क्योंकि में जीवित व्यक्ति हूं। मैं मुर्दा नहीं हूं। जब मैं मर जाऊँ तभी तुम्हें मेरे साथ सुविधा हो सकती है। अन्यथा नहीं। तुम्हारे हाथ में जो भी आता है उसे जल्दी से पकड़ लेते हो। और फिर तुम उसे बदलना चाहते। भय, लेकिन जीवन बहती गंगा है। वह बहता रहता है। और प्रामाणिक आदमी सदा नदी की भांति होता है। सिर्फ मृत लोग तालाब की भांति होते है। उनका पानी भाप बन जाता है। वे ज्यादा से ज्यादा कीचड़ से भर जाते है। और वे मुर्दा है क्योंकि वह बहते नहीं।
लेकिन आज मैं जो भी कह रहा हूं वे कल असंगत होने वाला नहीं है। वह आज से कहीं अधिक बेहतर और श्रेष्ठतर होगा। लेकिन उस श्रेष्ठतर और बेहतर को समझने के लिए तुम्हें उस ऊँचाई तक उठना होगा, नहीं तो वह असंगत मालूम पड़ेगा।
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