Tuesday, 21 July 2015

शरीर में ऊर्जा के तीन तल हैं-ओशो

osho in hindi
शरीर में ऊर्जा के तीन तल हैं। एक है दैनंदिन कामों का तल। इस तल की ऊर्जा आसानी से चुक जाती है। यह दिनचर्या के कामों के लिए ही है। दूसरा तल आपातकालीन कामों के लिए है, यह ज्यादा गहरा तल है। जब तुम किसी संकट में होते हो तभी इस ऊर्जा का उपयोग करते हो। और तीसरा तल जागतिक ऊर्जा का है, जो अनंत है।
पहले तल की ऊर्जा आसानी से चुक जाती है। यदि मैं तुम्हें दौड़ने को कहूं तो तुम तीन—चार चक्कर लगाकर कहोगे कि मैं थक गया। सच में तुम थके नहीं हो, पहले तल की ऊर्जा समाप्त हो गई है। सुबह में यह इतनी आसानी से नहीं चुकती, शाम में जल्दी चुक जाती है। क्योंकि दिनभर तुमने उसका उपयोग किया है, अब इसे विश्राम की जरूरत है। यही वजह है कि रात में शरीर आराम खोजता है। उसे गहरी नींद की जरूरत होती है। जागतिक ऊर्जा के भंडार से शरीर फिर अगले दिन के काम के लिए जरूरी ऊर्जा ले लेगा। यह पहला तल हुआ।
अभी यदि मैं तुमसे दौड़ने को कहूं तो तुम कहोगे कि मुझे नींद आ रही है। तभी कोई आता है और कहता है कि तुम्हारे घर में आग लग गई है। अचानक तुम्हारी नींद काफूर हो गई, थकावट जाती रही _ तुम ताजा हो गए और दौड़ पड़े। अचानक क्या हुआ? तुम थके थे, लेकिन आपातकाल ने तुम्हें तुम्हारी ऊर्जा के दूसरे तल से जोड़ दिया, और तुम फिर ताजा हो उठे। यह दूसरा तल है।
इस विधि में दूसरे तल की ऊर्जा को चुकाना है। पहला तल बहुत आसानी से चुक जाता है। उसके चुकने पर भी दौड़ते रहो। थकने पर भी दौड़ते रहो। कुछ ही क्षणों में ऊर्जा की एक नई लहर आएगी और तुम फिर ताजा हो जाओगे और तुम्हारी थकावट चली जाएगीं।
अनेक लोग मुझसे आकर कहते हैं कि जब हम साधना शिविर मैं होते है तब एक चमत्‍कार सा होता है कि हम इतना कर लेते है। सुबह में एक घंटा सक्रिय ध्‍यान, जिसमें हम पूरे पागल की तरह ध्यान करते हैं। पिछले पहर भी एक घंटा ध्यान करते हैं। और फिर रात में भी। तीन—तीन बार हम पागलों की तरह ध्यान करते हैं। अनेक लोगों ने कहा है कि यह हमें असंभव सा लगता है, लगता है कि अब और नहीं चलेगा, लगता है कि अगले दिन हाथ—पांव हिलाना भी असंभव होगा। लेकिन कोई थकता नहीं है। रोज तीन—तीन सत्र, और इतना कठिन श्रम, और इसके बावजूद कोई भी नहीं थकता है। ऐसा क्यों है?
ऐसा इसलिए है कि लोग शिविर में दूसरे तल की ऊर्जा से संबंधित हो जाते हैं। यदि तुम अकेले करो तो थक जाओगे। किसी पहाड़ पर जाकर प्रयोग करके देखो, पहले तल के चुकते ही तुम चुक जाओगे, थक जाओगे। लेकिन एक बड़े समूह में, जहां पांच सौ लोग सक्रिय ध्यान कर रहे हों, बात दूसरी है। तुम्हें लगता है, दूसरे लोग जब नहीं थके हैं तो तुमको भी कुछ देर जारी रखना चाहिए। और हरेक आदमी ऐसा ही सोच रहा है कि जब कोई नहीं थका है तो मुझे भी जारी रखना चाहिए। जब सब कोई ताजा और सक्रिय हैं तो मैं ही क्यों थकान अनुभव करूं?
यह समूह— भाव तुम्हें प्रेरणा देता है, शक्ति देता है, और तुम दूसरे तल पर पहुंच जाते हो। और दूसरा तल बहुत बड़ा है—आपातकालीन तल जो है। और जब आपातकालीन तल चुकता है, तब, और तभी, तुम जागतिक तल से, स्रोत से, अनंत से संबंधित होते हो। इसलिए बहुत श्रम की जरूरत है—इतने श्रम की कि तुम्हें लगे कि अब यह मेरे बस के बाहर है।
लेकिन अभी भी यह तुम्हारे वश के बाहर नहीं है। यह सिर्फ तुम्हारे पहले तल की ऊर्जा के वश के बाहर है। जब पहले तल की ऊर्जा चुकती है तो थकावट महसूस होती है। दूसरे तल की ऊर्जा के चुकने पर तुम्हें लगेगा कि अब अगर और ज्यादा किया तो मर जाऊंगा। अनेक लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि जब हम ध्यान की गहराई में उतरते हैं तो एक क्षण आता है कि हम भयभीत हो जाते हैं, आतंकित हो जाते हैं, क्योंकि लगता है कि मृत्यु करीब है, इससे आगे जाने पर मृत्यु निश्चित है।
यह मृत्यु का भय पकड़ता है और लगता है कि ध्यान से बाहर आना नहीं हो सकेगा। यही वह क्षण है, ठीक क्षण, जब तुम्हें साहस की जरूरत होगी। थोड़ा और साहस, और तुम तीसरे तल में प्रविष्ट हो जाओगे। वह सबसे गहरा तल है—आत्यंतिक, अनंत।

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