osho in hindi
यह घटना बड़ी प्रीतिकर है। श्वेतकेतु सब जानकर घर आया है। लेकिन पिता ने कहा, यह जानना किसी काम का नहीं है। तूने ब्रह्म को जाना या नहीं?
श्वेतकेतु ने कहा, अगर मेरे गुरु को पता होता, तो वे जरूर मुझे सिखाते। उन्होंने हाथ खोलकर लुटाया है। जो भी उन्हें मालूम था, उन्होंने सब मुझे दिया है। और उन्होंने स्वयं ही मुझसे कहा कि श्वेतकेतु, अब मेरे पास सीखने को कुछ भी नहीं बचा। अब तू घर लौट जा। वे झूठ न बोलेंगे।
तो फिर उद्दालक ने, श्वेतकेतु के पिता ने कहा, तो फिर तुझे मुझे ला। फल तोड़ लाए गए। श्वेतकेतु के पिता ने कहा, इन्हें कांट। फल काटे गए। बीज ही बीज भरे थे।
पिता ने कहा, यह एक बीज इसमें से चुन ले। क्या यह एक बीज इतना बडा वृक्ष हो सकता है? श्वेतकेतु ने कहा, हो सकता है नहीं; होता ही है। एक बीज बो देने से इतना बड़ा वृक्ष हो जाता है। तो पिता ने कहा, इस बीज में वृक्ष छिपा होगा। तू बीज को भी कांट। हम उस सूक्ष्म वृक्ष को खोजें, जो इसके भीतर छिपा है।
श्वेतकेतु ने बीज भी काटा, पर वहा तो कुछ भीं न था। वहां तो शून्य हाथ लगा। श्वेतकेतु नै कहा, यहां तो मैं कुछ भी नहीं देखता हूं। उद्दालक ने कहा, जो नहीं दिखाई पड़ रहा है, जो अदृश्य है, उसी से यह महावृक्ष, यह दृश्य पैदा होता है। और हम भी ऐसे ही शून्य से आए हैं। वह जो नहीं दिखाई पड़ता है, उससे ही हमारा भी जन्म हुआ है।
श्वेतकेतु ने पूछा, क्या मैं भी उसी महाशून्य से आया हूं? इस प्रश्न के उत्तर में ही उपनिषदों का यह महावचन है, तत्वमसि श्वेतकेतु! हां, श्वेतकेतु, तू भी वहीं से आया है, तू भी वही है। और कहते हैं, यह अमृत वचन सुनकर श्वेतकेतु ज्ञान को उपलब्ध हो गया। यह तो श्रवण से ही हुआ। कुछ करना न पडा। यह तो किसी ने चेताया। सोए थे, किसी ने जगाया। आंख खुल गई। होश आ गया।
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