Thursday, 9 July 2015

हम कौन हैं-ओशो

osho in hindi

एक ही अज्ञान है कि हमें पता नहीं कि हम कौन हैं। फिर सारे अज्ञान उसी एक अज्ञान से पैदा होते हैं। एक ही बीज है; फिर तो वृक्ष बड़ा हो जाता है; फिर तो बहुत शाखाएं-प्रशाखाएं होती हैं; बहुत फूल-पत्ते लगते, फल लगते। और फिर एक बीज में बहुत बीज भी लगते हैं। वनस्पतिशास्त्री कहते हैं: एक छोटा-सा बीज सारी पृथ्वी को हरियाली से भर देने में समर्थ है। और एक छोटे-से अज्ञान के बीज ने मनुष्य को परिपूर्ण अंधकार से भर दिया है।
बीज है छोटाः यह बोध नहीं है कि मैं कौन हूं। और जिसे यही बोध नहीं है कि मैं कौन हूं, फिर वह जो भी करेगा गलत ही करेगा। जहां भीतर का दीया ही न जला हो, फिर तुम्हारे कृत्य के ठीक होने की कोई संभावना नहीं। और हम सब चेष्टा करते हैं कि कृत्य ठीक हो जाए। यह ऐसे ही है जैसे कोई अंधेरे में दीया तो न जलाए और ठीक-ठीक चलने का अभ्यास करे, ताकि अंधेरे में मैं बिना गिरे चल सकूं, बिना टकराए चल सकूं, दीवालों से सिर न फूटे, जब चाहिए तब दरवाजा मिल जाए।
काश, जिंदगी थिर होती तो यह संभव हो जाता! काश, ऐसा होता कि तुम एक ही मकान में सदा रहते, एक ही कक्ष में सदा रहते, तो धीरे-धीरे अभ्यास हो जाता। धीरे-धीरे तुम जानने लगते बिना दीए के जलाए, द्वार कहां है, दीवाल कहां है। जानने लगते टेबिल कहां रखी है, कुर्सी कहां रखी है। जानने लगते किस दिशा में जाएं, किस दिशा में न जाएं। तो दीए की भी जरूरत न थी। लेकिन जिंदगी रोज बदल जाती है, यह अड़चन है। यह जिंदगी का मकान परिवर्तनशील है। यहां एक क्षण को भी कुछ थिर नहीं है। यहां सब धारा है। यहां सब बह रहा है। यहां सब बदल रहा है। इसलिए कल तुमने जो तय किया था वह आज काम नहीं आता। आज जो तुम अनुभव करोगे, वह कल काम में नहीं आएगा। दीया तो जलाना ही होगा।

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