osho in hindi
केवल मनुष्य अपनी ऊर्जा को दिशा देने और रूपांतरित करने की क्षमता रखता है। अन्यथा मृत्यु स्वाभाविक घटना है, प्रत्येक चीज मरती है। केवल मनुष्य अमृत को, चिन्मय को जान सकता है।
तो तुम इस पूरी चीज को एक नियम में सीमित कर सकते हो। अगर ऊर्जा बाहर जाती है तो मृत्यु उसका परिणाम है, और तब तुम कभी न जानोगे कि जीवन क्या है! तुम धीरे— धीरे मरना भर जानोगे, जीवित होने की प्रगाढ़ता का तुम्हें पता नहीं चलेगा। अगर किसी चीज की भी ऊर्जा बाहर जाती है तो उसकी मृत्यु अपने आप घटित होती है। और अगर तुमऊर्जा की दिशा बदल देते हो, बाहर बहने की बजाय वह भीतर को ओर बहने लगे तो रूपांतरण संभव है। तब यह भीतर की ओर बहने वाली ऊर्जा एक बिंदु पर केंद्रित हो जाती है।
वह बिंदु नाभि—केंद्र के पास है, क्योंकि तुम नाभि के रूप में ही जन्म धारण करते हो। तुम अपनी नाभि से ही अपनी मां से जुड़े होते हो। फिर नाभि से ही मां की जीवन—ऊर्जा तुम्हें प्राप्त होती है। और नाभि के विच्छिन्न किए जाने पर ही तुम व्यक्ति बनते हो; उसके ‘पहले तुम व्यक्ति नहीं हो, मां के ही एक अंग हो। असली जन्म तो नाभि—रज्यू के कटने पर ही घटित होता है। तभी बच्चा अपना जीवन शुरू करता है, अपना केंद्र बनता है। वह केंद्र नाभि के पास होगा, क्योंकि नाभि से ही बच्चे को जीवन—ऊर्जा मिलती है। वही सेतु है। और तुम जानो न जानो, अभी भी नाभि ही तुम्हारा केंद्र है।
इसलिए अगर ऊर्जा भीतर बहने लगे, दिशा बदलने पर जब वह भीतर मुडने लगे, तो वह नाभि—केंद्र पर ही चोट करेगी। और जब ऊर्जा इतनी हो जाएगी कि केंद्र उसे अपने में समा न सके तो विस्फोट घटित होगा। उस विस्फोट में तुम पुन: व्यक्ति नहीं रह जाते। जैसे जब तुम मां से जुड़े थे तो व्यक्ति नहीं थे वैसे ही पुन: तुम व्यक्ति न रहोगे।
अब तुम्हारा एक नया जन्म हुआ। तुम ब्रह्मांड के साथ एक हो गए। अब तुम्हारा कोई केंद्र न रहा, अब तुम ‘मैं’ नहीं कह सकते, क्योंकि अब अहंकार न रहा। बुद्ध, कृष्ण या महावीर ‘मैं’ का प्रयोग किए जाते हैं, लेकिन वह औपचारिक है। उनका अहंकार जाता रहा है, वे नहीं हैं।
No comments:
Post a Comment