osho in hindi
जब ‘संभोग से समाधि की ओर’ पुस्तक प्रकाशित हुई तो बहुत से लोग मेरे पास आए। उन्होंने कहा कि कृपा कर यह नाम ‘संभोग से समाधि की ओर’ बदल दीजिए। संभोग शब्द से ही वे घबड़ा जाते हैं। उन्होंने किताब भी नहीं पढ़ी। और वे भी नाम बदलने को कहते हैं जिन्होंने किताब नहीं पढी है। क्यों?
यह शब्द ही तुम्हारे भीतर व्याख्या को जन्म दे देता है। मन ऐसा व्याख्याकार है कि अगर मैंने कहा कि नीबू का रस तो तुम्हारी लार टपकने लगती है। तुमने शब्दों की व्याख्या कर ली।’नीबू का रस’ इन शब्दों में नीबू जैसी कोई चीज नहीं है, लेकिन तुम्हारी लार बहने लगी। अगर मैं कुछ क्षणों के लिए रुक जाऊं तो तुम मुश्किल में पड़ जाओगे। तुम्हें लार को निगलना पड़ेगा। क्या हुआ? मन ने व्याख्या कर ली; मन बीच में आ गया।
जब शब्दों से भी तुम तटस्थ नहीं रह सकते, तुम व्याख्या किए बिना नहीं रह सकते, उस समय क्या जब कोई इच्छा उठेगी? इच्छा से अलग रहना, उसका निष्पक्ष निरीक्षक होना, मौन और शांत होकर व्याख्या के बिना उसे देखना तो बहुत कठिन होगा।
मैं कहता हूं ‘यह आदमी मुसलमान है।’ जिस क्षण मैं कहता हूं कि यह आदमी मुसलमान है, हिंदू सोच लेता है कि यह आदमी बुरा है। अगर मैं कहूं कि यह आदमी यहूदी है तो ईसाई निर्णय ले लेगा कि यह आदमी अच्छा नहीं है। यहूदी शब्द सुनकर ही ईसाई मन व्याख्या कर लेता है; परंपरागत धारणाएं, दकियानूसी विचार उभरकर ऊपर चले आते हैं। कोई इस यहूदी का विचार नहीं करेगा; एक पुरानी व्याख्या उस पर लाद दी जाएगी।
प्रत्येक यहूदी भिन्न है, प्रत्येक हिंदू भिन्न है और अनूठा व्यक्ति है। तुम किसी हिंदू की व्याख्या सिर्फ इसीलिए नहीं कर सकते क्योंकि तुम और हिंदुओं को जानते हो। तुम यह निर्णय ले सकते हो कि जिन हिंदुओं को मैं जानता हूं वे सभी बुरे हैं। तब भी तुम इस हिंदू को नहीं जानते हो; यह तुम्हारे अनुभव में नहीं आया है। तुम अपने अतीत के अनुभव के आधार पर इस हिंदू की व्याख्या कर रहे हो।
व्याख्या मत करो। व्याख्या विमर्श नहीं है। विमर्श का अर्थ है कि केवल इस तथ्य पर विमर्श करो, केवल इस तथ्य पर, इस तथ्य के साथ जीओ। ऋषियों ने कहा है कि कामवासना बुरी है। हो सकता है कि उनके लिए बुरी रही हो, लेकिन तुम तो नहीं जानते हो। तुममें कामवासना है, और वह कामवासना अभी है। तुम उस पर विमर्श करो, उस पर आंखें गड़ाओ, पर अवधान दो।
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