Tuesday, 21 July 2015

जिंदगी के मामले में तो अपने कपड़े खुद बनाने होते है-ओशो

osho in hindi

जीवन तो कोरा कागज है ; 
जो लिखोगे वही पढोगे | 
गालियाँ लिख सकते हो , गीत लिख सकते हो | 
और गालियाँ भी उसी वर्णमाला से बनती है जिससे गीत बनते है ; वर्णमाला तो निरपेक्ष है , निष्पक्ष है |
जिस कागज पर लिखते हो वह भी निरपेक्ष , निष्पक्ष | जिस कलम से लिखते हो , वह भी निरपेक्ष , वह भी निष्पक्ष | 
सब दांव तुम्हारे हाथ में है | 
तुमने इस ढंग से जीया होगा , इसलिए व्यर्थ मालूम होता है | 
तुम्हारे जीने में भूल है | और जीवन को गाली मत देना | 
यह बड़े मजे की बात है ! लोग कहते है , जीवन व्यर्थ है |
यह नही कहते कि हमारे जीने का ढंग व्यर्थ है !
और तुम्हारे तथाकथित साधू--संत , महात्मा भी तुमको यही समझाते है--जीवन व्यर्थ है |
में कुछ और कहना चाहता हूँ | 
में कहना चाहता हूँ ; जीवन न तो सार्थक है ; न व्यर्थ ; जीवन तो निष्पक्ष है ; 
जीवन तो कोरा आकाश है :- 
उठाओ तुलिका , भरो रंग | 
चाहो तो इन्द्रधनुष बनाओ और चाहो तो कीचड़ मचा दो | कुशलता चाहिए | 
अगर जीवन व्यर्थ है तो उसका अर्थ यह है कि तुमने जीवन को जीने की कला नही सीखी ; उसका अर्थ है कि तुम यह मान कर चले थे कि कोई जीवन में रेडीमेड अर्थ होगा | 
जीवन कोई रेडीमेड कपड़े नही है , कोई सैमसन की दुकान नही है , कि गए और तैयार कपड़े मिल गए | जिंदगी से कपड़े बनाने पड़ते है | 
फिर जो बनाओगे वही पहनना पड़ेगा , वही ओढ़ना पड़ेगा | 
और कोई दूसरा तुम्हारी जिंदगी में कुछ भी नही कर सकता | 
कोई दूसरा तुहारे कपड़े नही बना सकता | 
जिंदगी के मामले में तो अपने कपड़े खुद बनाने होते है |

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