osho in hindi
जीवन तो कोरा कागज है ;
जो
लिखोगे वही पढोगे | गालियाँ लिख सकते हो , गीत लिख सकते हो |
और गालियाँ भी उसी वर्णमाला से बनती है जिससे गीत बनते है ; वर्णमाला तो निरपेक्ष है , निष्पक्ष है |
जिस कागज पर लिखते हो वह भी निरपेक्ष , निष्पक्ष | जिस कलम से लिखते हो , वह भी निरपेक्ष , वह भी निष्पक्ष |
सब दांव तुम्हारे हाथ में है |
तुमने इस ढंग से जीया होगा , इसलिए व्यर्थ मालूम होता है |
तुम्हारे जीने में भूल है | और जीवन को गाली मत देना |
यह बड़े मजे की बात है ! लोग कहते है , जीवन व्यर्थ है |
यह नही कहते कि हमारे जीने का ढंग व्यर्थ है !
और तुम्हारे तथाकथित साधू--संत , महात्मा भी तुमको यही समझाते है--जीवन व्यर्थ है |
में कुछ और कहना चाहता हूँ |
में कहना चाहता हूँ ; जीवन न तो सार्थक है ; न व्यर्थ ; जीवन तो निष्पक्ष है ;
जीवन तो कोरा आकाश है :-
उठाओ तुलिका , भरो रंग |
चाहो तो इन्द्रधनुष बनाओ और चाहो तो कीचड़ मचा दो | कुशलता चाहिए |
अगर जीवन व्यर्थ है तो उसका अर्थ यह है कि तुमने जीवन को जीने की कला नही सीखी ; उसका अर्थ है कि तुम यह मान कर चले थे कि कोई जीवन में रेडीमेड अर्थ होगा |
जीवन कोई रेडीमेड कपड़े नही है , कोई सैमसन की दुकान नही है , कि गए और तैयार कपड़े मिल गए | जिंदगी से कपड़े बनाने पड़ते है |
फिर जो बनाओगे वही पहनना पड़ेगा , वही ओढ़ना पड़ेगा |
और कोई दूसरा तुम्हारी जिंदगी में कुछ भी नही कर सकता |
कोई दूसरा तुहारे कपड़े नही बना सकता |
जिंदगी के मामले में तो अपने कपड़े खुद बनाने होते है |
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