Wednesday, 24 June 2015

मूलबंध ध्यान-ओशो

osho in hindi

जीवन ऊर्जा है, शक्ति है। लेकिन साधारणत: तुम्हारी जीवन-ऊर्जा नीचे की और प्रवाहित हो रही है। इसलिए तुम्हारी सब जीवन ऊर्जा अनंत वासना बन जाती है। काम वासना तुम्हारा निम्नतम चक्र है। तुम्हारी ऊर्जा नीचे गिर रही है। और सारी ऊर्जा काम केन्द्र पर इकट्ठी हो जाती है। इस लिए तुम्हारी सारी शक्ति कामवासना बन जाती है।

एक छोटा सा प्रयोग, जब भी तुम्हारे मन में कामवासना उठे तो, ड़रो मत शांत होकर बैठ जाऔ। जोर से श्वास को बहार फेंको—उच्छ वास। भीतर मत लो श्वास को— क्यों कि जैसे भी तुम भीतर गहरी श्वास को लोगे, भीतर जाती श्वास काम ऊर्जा को नीचे की धकाती है। जब सारी श्वास बहार फिंक जाती है, तो तुम्हारा पेट और नाभि‍ वैक्यूम हो जाती है, शून्य हो जाती है। और जहां कहीं शून्य हो जाता है, वहां आसपास की ऊर्जा शून्य की तरफ प्रवाहित होने लगती है। शून्य खींचता है, क्योंकि प्रकृति शून्य को बर्दाश्त नहीं करती, शून्य को भरती है। तुम्हारी नाभि के पास शून्य हो जाए, तो मूलाधार से ऊर्जा तत्क्षण नाभि की तरफ उठ जाती है, और तुम्हें बड़ा रस मिलेगा—जब तुम पहली दफ़ा अनुभव करोगे कि एक गहन ऊर्जा बाण की तरह आकर नाभि‍ में उठ गई। तुम पाओगें, सारा तन एक गहन स्वास्थ्य से भर गया। एक ताजगी, ठीक वैसी ही ताजगी का अनुभव करोगे जैसा संभोग के बाद उदासी का होता है। वैसे ही अगर ऊर्जा नाभि की तरफ उठ जाए, तो तुम्हें हर्ष का अनुभव होगा। एक प्रफुल्लता घेर लेगी। ऊर्जा का रूपांतरण शुरू हुआ, तुम ज्यादा शक्तिशाली, ज्यादा सौमनस्ययपूर्ण, ज्यादा उत्फुरल्ली, सक्रिय, अन-थके, विश्रामपूर्ण मालूम पड़ोगे। जैसे गहरी नींद के बाद उठे हो, और ताजगी ने घेर लिया है। इसे अगर तुम निरंतर करते रहे, अगर इसे तुमने सतत साधना बना ली—और इसका कोई पता किसी को नहीं चलता;
तुम इसे बाजार में खड़े हुए कर सकते हो, तुम दुकान पर बैठे हुए कर सकते हो, दफ़तर में काम करते हुए कर सकते हो, कुर्सी पर बैठे हुए, कब तुमने चुपचाप अपने पेट को को भीतर खींच लिया। एक क्षण में ऊर्जा ऊपर की तरफ स्फुीरण कर जाती है। अगर एक व्यक्ति दिन में कम से कम तीन सौ बार, क्षण भर को भी मूलबंध लगा ले, कुछ महीनों के बाद पाएगा, कामवासना तिरोहित हो गई। तीन सौ बार करना बहुत कठिन नहीं है। यह मैं सुगमंतम मार्ग कह रहा हूँ, जो ब्रह्मचर्य की उपलब्धि का हो सकता है। फिर और कठिन मार्ग हैं, जिनके लिए सारा जीवन छोड़ कर जाना पड़ेगा। पर कोई जरूरत नहीं है। बस, तुमने एक बात सीख ली कि ऊर्जा कैसे नाभि तक जाए शेष तुम्हें चिंता नहीं करनी है। तुम ऊर्जा को, जब भी कामवासना उठे नाभि में इक्ट्ठा करते जाओ।
जैसे-जैसे ऊर्जा बढ़ेगी नाभि में, अपने आप ऊपर की तरफ उठने लगेगी। जैसे बर्तन में पानी बढ़ता जाए, तो पानी की सतह ऊपर उठती जाए।

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