Wednesday, 24 June 2015

कुंडलिनी के लिए सर्प का प्रतीक बड़ा मौजूं है-ओशो


osho in hindi

कुंडलिनी के लिए सर्प का प्रतीक बड़ा मौजूं है। शायद उससे अच्छा कोई प्रतीक नहीं है। इसलिए कुंडलिनी में ही नहीं, सर्प ने बहुत—बहुत यात्राएं की हैं, उसके प्रतीक ने। और दुनिया के किसी कोने में भी ऐसा नहीं है कि सर्प कभी न कभी उस कोने के धर्म में प्रवेश न कर गया हो। क्योंकि सर्प में कई खुबियां हैं जो कुंडलिनी से तालमेल खाती हैं।
पहली तो बात यह कि सर्प का खयाल करते ही सरकने का खयाल आता है। और कुंडलिनी का पहला अनुभव किसी चीज के सरकने का अनुभव है, कोई चीज जैसे सरक गई—जैसे सर्प सरक गया।
सर्प का खयाल करते ही एक दूसरी चीज खयाल में आती है कि सर्प के कोई पैर नहीं हैं, लेकिन गति करता है, गति का कोई साधन नहीं है उसके पास, कोई पैर नहीं हैं, लेकिन गति करता है। कुंडलिनी के पास भी कोई पैर नहीं हैं, कोई साधन नहीं है, निपट ऊर्जा है, फिर भी यात्रा करती है।
तीसरी बात जो खयाल में आती है कि सर्प जब बैठा हो, विश्राम कर रहा हो, तो कुंडल मारकर बैठ जाता है। जब कुंडलिनी बैठी हालत में होती है, हमारे शरीर की ऊर्जा जब जगी नहीं है, तो वह भी कुंडल मारे ही बैठी रहती है। असल में, एक ही जगह पर बहुत लंबी चीज को बैठना हो तो कुंडल मारकर ही बैठ सकती है, और तो कोई उपाय भी नहीं है उसके बैठने का।
वह कुंडल लगाकर बैठ जाए तो बहुत लंबी चीज भी बहुत छोटी जगह में बन जाए। और बहुत बड़ी शक्ति बहुत छोटे से बिंदु पर बैठी है, तो कुंडल मारकर ही बैठ सकती है। फिर सर्प जब उठता है, तो एक—एक कुंडल टूटते हैं उसके—जैसे—जैसे वह उठता है उसके कुंडल टूटते हैं। ऐसा ही एक—एक कुंडल कुंडलिनी का भी टूटता हुआ मालूम पड़ता है, जब कुंडलिनी का सर्प उठना शुरू होता है।
सर्प कभी खिलवाड़ में अपनी पूंछ भी पकड़ लेता है। सर्प का पूंछ पकड़ने का प्रतीक भी कीमती है। और अनेक लोगों को वह खयाल में आया कि वह पकड़ने का, पूंछ को पकड़ लेने का प्रतीक बड़ा कीमती है। वह कीमती इसलिए है कि जब कुंडलिनी पूरी जागेगी, तो वह वर्तुलाकार हो जाएगी और भीतर उसका वर्तुल बनना शुरू हो जाएगा—उसका फन अपनी ही पूंछ पकड़ लेगा; सांप एक वर्तुल बन जाता।
अब कोई प्रतीक ऐसा हो सकता है कि सांप के मुंह ने उसकी पूंछ को पकड़ा। अगर पुरुष साधना की दृष्टि से प्रतीक बनाया गया होगा तो मुंह पूंछ को पकड़ेगा— आक्रामक होगा। और अगर स्त्री साधना के ध्यान से प्रतीक बनाया गया होगा तो पूंछ मुंह को छूती हुई मालूम पड़ेगी—समर्पित पूंछ है वह, मुंह ने पकड़ी नहीं है। यह फर्क पड़ेगा प्रतीक में, और कोई फर्क पडनेवाला नहीं है।

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