Thursday, 16 July 2015

मस्तिष्क का पंगुपन-ओशो

osho in hindi


चीन में हजारों साल तक स्त्रियों के पैर में लोहे का जूता पहनाया जाता था, कि पैर छोटा रहे। छोटा पैर सौंदर्य का चिह्न था। जितना छोटा पैर हो, उतने बड़े घर की लड़की थी। तो स्त्रियां चल ही नहीं सकती थीं, पैर इतने छोटे रह जाते थे। शरीर तो बड़े हो जाते, पैर छोटे रह जाते। वे चल ही न पातीं। जो स्त्री बिलकुल न चल पाती, वह उतने शाही खानदान की स्त्री! क्योंकि गरीब की स्त्री तो अफोर्ड नहीं कर सकती थी, उसको तो पैर बड़े ही रखना पड़ता था, उसको तो चलना पड़ता था, काम करना पड़ता था। सिर्फ शाही स्त्रिया चलने से बच सकती थीं। तो कंधों पर हाथ का सहारा लेकर चलती थीं। अपंग हो जाती थीं, लेकिन समझा जाता था कि सौंदर्य है। अपंग होना था वह।

आज चीन की कोई लड़की तैयार न होगी, कहेगी पागल थे वे लोग। लेकिन हजारों साल तक यह चला। जब कोई चीज चलती है तो पता नहीं चलता। जब हजारों लोग, इकट्ठी भीड़ करती है तो पता नहीं चलता। जब सारी भीड़ पैरों में जूते पहना रही हो लोहे के, तो सारी लड़कियां पहनती थीं। जो नहीं पहनती, उसको लोग कहते कि तू पागल है। उसे अच्छा, सुंदर पति न मिलता, संपन्न परिवार न मिलता, वह दीन और दरिद्र समझी जाती। और जहां भी उसका पैर दिख जाता वहीं गंवार समझी जाती— अशिक्षित, असंस्कृत। क्योंकि तेरा पैर इतना बड़ा! पैर सिर्फ बड़े गंवार के ही चीन में होते थे, सुसंस्कृत का पैर तो छोटा होता था।
तो हजारों साल तक इस खयाल ने वहां की स्त्रियों को पंगु बनाए रखा। खयाल भी नहीं आया कि हम यह क्या पागलपन कर रहे हैं! लेकिन वह चला। जब टूटा तब पता चला कि यह तो पागलपन था।
ऐसे ही सारी मनुष्यता का मस्तिष्क पंगु बनाया गया है, ईश्वर की दृष्टि से। ईश्वर की तरफ जाने की जो प्यास है, उसे सब तरफ से काट दिया जाता है; उसको पनपने के मौके नहीं दिए जाते। और अगर कभी उठती भी हो, तो झूठे सब्स्‍टियूट खड़े कर दिए जाते हैं और बता दिया जाता है परमात्मा चाहिए? चले जाओ मंदिर में! परमात्मा चाहिए? पढ़ लो गीता, पढ़ो कुरान, पढ़ो वेद— मिल जाएगा।
वहां कुछ भी नहीं मिलता, शब्द मिलते हैं। मंदिर में पत्थर मिलते हैं। तब आदमी सोचता है कि कुछ भी नहीं है, तो शायद अपनी प्यास ही झूठी रही होगी। और फिर प्यास ऐसी चीज है कि आई और गई। जब तक आप मंदिर गए तब तक प्यास चली गई। जब तक आपने गीता पढ़ी तब तक प्यास चली गई। फिर धीरे— धीरे प्यास कुंठित हो जाती है। और जब किसी प्यास को तृप्त होने का मौका न मिले तो वह मर जाती है। वह धीरे धीरे मर जाती है।

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