Tuesday, 21 July 2015

स्व के विस्मरण से नहीं , स्व के विसर्जन से-ओशो

osho in hindi

प्रभु स्व के विस्मरण से नहीं , स्व के विसर्जन से उपलब्ध होता है एक मंदिर पड़ोस में है | 
रात्री वहां रोज ही भजन - कीर्तन होने लगता है |
धुप की तीव्र गंध उसके बंद प्रकोष्ट में भर जाती है | 
फिर आरती - वंदन होता है | वाद्ध बजते हैं | घंटो का निनाद होता है | 
और ढोल भी बजते हैं | फिर पुजारी नृत्य करता है | और क्रमशः भक्तगण भी नाचने लगते हैं |
यह देखने एक दिन मंदिर के भीतर गया था | जो देखा वह पूजा नहीं , मूर्च्छा थी | 
वह प्रार्थना के नाम पर आत्म - विस्मरण था | अपने को भूलना दुःख - विस्मरण देता है | जो नशा करता है , वही कम धर्म के ऐसे रूप भी कर देते हैं |

जीवन - संताप को कौन नहीं भूलना चाहता है ? 
मादक द्रव्य इसीलिए खोजे जाते हैं | मादक क्रिया - कांड भी इसीलिए खोजे जाते हैं | 
मनुष्य ने बहुत तरह की शराबें बनाई हैं | 
और सबसे खतरनाक शराबें वे हैं , जो कि बोतलों में बंद नहीं होती हैं |
दुख - विस्मरण से दुख मिटता नहीं है | उसके बीज ऐसे नष्ट नहीं होते , 
विपरीत , उसकी जड़ें और मजबूत होती जाती हैं | 
दुख को भूलना नहीं , मिटाना होता है | 
उसे भूलना धर्म नहीं , वंचना है |

दुख - विस्मरण का उपाय जैसे स्व - विस्मरण है , 
वैसे ही दुख - विनाश का उपाय स्व - स्मरण है |

धर्म वह है , जो स्व को परिपूर्ण जाग्रत करता है |
धर्म के शेष सब रूप मिथ्या हैं | 
स्व - स्मृति पथ है , स्व - विस्मृति विपथ है | 
और यह भी स्मरण रहे कि स्व - विस्मृति से स्व मिटता नहीं है | 
उसकी प्रच्छन्न धारा प्रवाहित ही रहती है | 
स्व - स्मृति से ही स्व विसर्जित होता है |

जो स्व को परिपूर्ण जनता है , वह स्व के विसर्जन को उपलब्द हो , सर्व को पा लेता है | स्व के विस्मरण से नहीं , स्व के विसर्जन से सर्व की राह है |
प्रभु के स्मरण से स्व को भुलाना भूल है |
स्व के बोध से स्व को मिटना मार्ग है | 
और जब स्व नहीं रह जाता है , तब जो शेष रह जाता है , वही प्रभु है |


प्रभु स्व के विस्मरण से नहीं , स्व के विसर्जन से उपलब्ध होता है| 

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