Saturday, 27 June 2015

धन का असली मजा धन में नहीं -ओशो

osho in hindi

धन का असली मजा धन में नहीं है। दूसरों की गरीबी में है। अगर कोई भी गरीब न हो, धन का मजा ही चला गया। कोई रस नहीं है फिर उसमे थोड़ा समझिए कि कोहिनूर हीरा आपके पास है। उसका मजा क्‍या है? मजा सिर्फ यह है कि आपके पास है, और किसी के पास नहीं है। सबके पास कोहिनूर हीरा हो तो बात ही व्‍यर्थ हो गई। आप तो कोहिनूर हीरे को एक दम से फेंक देंगे। इसका कोई मूल्‍य नहीं है। वह वही कोहनूर हीरा है, लेकिन अब इसका कोई मूल्‍य नहीं है। इसका मूल्‍य इसमें था कि दूसरों के पास नहीं है। वह बड़े मजे कि बात है। आपके पास है; इसमे मूल्‍य नहीं है; दूसरे के पास नहीं है, इसमे मूल्‍य है।

तो सारी शक्‍ति दूसरे पर निर्भर है और दूसरे की तुलना में है। अमीर-अमीर है, क्‍योंकि कोई गरीब है। ज्ञानी-ज्ञानी है, क्‍योंकि कोई अज्ञानी है। शक्‍तिशाली-शक्‍तिशाली है। क्‍योंकि दूसरा निर्बल हे। शक्‍ति की दौड़ आत्‍म-खोज नहीं बन सकती। क्‍योंकि शक्‍ति की दौड़ दूसरे से बंधी है। दूसरे की तुलना में है। और एक मजे की बात है कि जो दूसरे की तुलना में है वह दूसरे पर निर्भर है। इसलिए बड़े से बड़ा शक्‍तिशाली आदमी भी अपने से कमजोर लोगो पर निर्भर होता है। यह हमको भी दिखाई देता है। जब आप एक सम्राट को चलते देखते है और उसके पीछे गुलामों को चलते देखते है तो आपको ख्‍याल नहीं होता की सम्राट गुलामों का उतना ही गुलाम है जितना गुलाम सम्राट का। शायद सम्राट कुछ ज्‍यादा हो। क्‍योंकि गुलामों को मौका मिले तो वे छोड़ कर सम्राट को भाग जाएं और स्‍वतंत्र हो जाएं। लेकिन सम्राट गुलामों को छोड़ कर नहीं जा सकता है। क्‍योंकि गुलाम के बीन वह सम्राट ही नहीं रह जायेगा। उसका सम्राट पन गुलामों पर निर्भर है। वह गुलामों की भी गुलामी है।
जो व्‍यक्‍ति शक्‍ति की खोज करता है। वह निर्भरता की खोज कर रहा है। वह परतंत्रता की खोज कर रहा है। इसलिए बड़े से बड़ा धनी भी धनवान नहीं हो सकता। और बड़े से बड़ा पंडित भी ज्ञानवान नहीं हो सकता। क्‍योंकि सब तुलना में सारा मामला है। उसका पांडित्य मूढ़ों पर निर्भर है। मूढ़ अगर विदा हो जाएं तो उसका पांडित्य विदा हो जायेगा।
साधु असाधु पर निर्भर है, असाधु न रहे तो साधु का कोई मुल्‍य नहीं है। वह खो जाता है। इसलिए साधु कोशिश करता है दुनिया में असाधु ने रहे। लेकिन अगर वे समझेंगे गणित को तो उनको पता चल जाएगा। वह क्‍या कर रहा है। वे आत्मघात में लगे है। उनकी साधुता असाधुता पर निर्भर है। वह जो बेईमान है, जो चोर है, वह उसकी गरिमा है। वह उसका गौरव है। क्‍योंकि वे बेईमान नहीं है , वे चोर नहीं है। एक आदमी चोर है। और बेईमान है। वह जो चोर है। बेईमान है। वह साधु की चमक है। थोड़ा देर के लिए कल्‍पना करें कि कोई बेईमान नहीं है, चोर नहीं है। क्‍या ऐसे समाज में साधु हो सकता है। कोई साधु हो सकता है। साधु का क्‍या अर्थ है? कौन पूछेगा साधे को? कौन सम्‍मान देगा? दुनिया से जिस दिन भी असाधु को मिटाना हो उस दिन साधु को मिटाने की तैयारी चाहिए। वे परस्‍पर गुलामियां है।
ऐसा ख्‍याल में साफ आ जाए कि शक्‍ति तुलनात्‍मक है, शक्‍ति दूसरे पर निर्भर है। तो शक्‍ति कभी भी मुक्‍ति नहीं बन सकती है। मुक्‍ति का तो अर्थ यह है कि मैं बिलकुल अकेला रह जाऊं, मुझ पर कोई निर्भरता किसी के ऊपर मेरी निर्भरता न रह जाए। मैं अकेला ही परिपूर्ण आप्‍तकाम हो जाऊँ। मेरे भीतर ही सब कुछ हो जो मुझे चाहिए, मेरी चाह की पूर्ति कहीं भी बहार से न होती हो।

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