Thursday, 11 June 2015

हर पिता के लिए विचारणीय

ओशो अमृत वचन ....

हर पिता के लिए विचारणीय

osho in hindi


ध्यान रखें, दुनिया में कोई किसी को सुधार नहीं सकता। सुधारना इतना आसान मामला नहीं है। और जिन लोगों ने लोगों को सुधारा है, वे वे ही लोग थे, जिन्होंने सुधारने की कोशिश नहीं की है। उनके पास सुधरना हो जाता है। अगर आपका बेटा आपके पास रह कर नहीं सुधरता, तो आप समझना कि बात समाप्त हो गई, अब और कुछ किया नहीं जा सकता। आपके पास रह कर कोई सुधर जाए बस, तो समझना कि ठीक है। अपने को बदलें कि आपके पास एक हवा पैदा हो जाए कि आपका बेटा, या आपकी बेटी, या आपके मित्र, या आपका परिवार उस हवा को छुए।
लेकिन जो भी सुधारने वाले लोग होते हैं, ये बोझिल हो जाते हैं। इनको कोई पसंद नहीं करता। ये दुष्ट होते हैं। और घर भर अनुभव करता है कि यह दुष्ट से कैसे छुटकारा हो! और आप ऐसी बारीक, नाजुक नसें पकड़ते हैं लोगों की कि वे आपको कह भी नहीं सकते कि आप गलत हैं। और आप बोझिल हो जाते हैं। और आप कठिन मालूम होने लगते हैं। आपको सहना मुश्किल होने लगता है।
आदमी की हिंसा गहरी है। और आदमी अनेक तरह से हिंसा करता है। यह भी हिंसा है! आप क्यों सुधारने के लिए इतने दीवाने हैं? और अगर नहीं सुधरना है, तो आप कुछ भी न कर पाएंगे। इस दुनिया में किसी को जबरदस्ती ठीक करने का कोई उपाय नहीं है। है ही नहीं उपाय। हां, जबरदस्ती ठीक करने की कोशिश उसको और जड़ कर सकती है। कई बार तो बहुत अच्छे बाप भी बहुत बुरे बेटों के कारण हो जाते हैं।
महात्मा गांधी के लड़के ने गांधी के सुधारने का बदला लिया। अब महात्मा गांधी से अच्छा बाप पाना मुश्किल है, बहुत कठिन है। अच्छे बाप का जो भी अर्थ हो सकता है, वह महात्मा गांधी में पूरा है। लेकिन हरिदास के लिए बुरे बाप सिद्ध हुए। क्या कठिनाई हुई?
यह बड़ी मनोवैज्ञानिक घटना है। और इस सदी के लिए विचारणीय है। और हर बाप के लिए विचारणीय है। क्योंकि गांधीजी कहते थे, हिंदू-मुसलमान सब मुझे एक हैं। लेकिन हरिदास अनुभव करता था कि यह बात झूठ है। यह बात है; फर्क तो है। क्योंकि गांधी गीता को कहते हैं माता; कुरान को नहीं कहते। और गांधी गीता और कुरान को भी एक बताते हैं, तो गीता में जो कहा है, अगर वही कुरान में कहा है, तब तो ठीक; और जो कुरान में कहा है और गीता में नहीं कहा, उसको बिलकुल छोड़ जाते हैं, उसकी बात ही नहीं करते। तो कुरान में भी गीता को ही ढूंढ़ लेते हैं, तभी कहते हैं ठीक है; नहीं तो नहीं कहते हैं।
हरिदास मुसलमान हो गया; हरिदास गांधी से वह हो गया अब्दुल्ला गांधी। गांधी को बड़ा सदमा पहुंचा। और उन्होंने कहा अपने मित्रों को कि मुझे बहुत दुख हुआ। जब हरिदास को पता लगा तो उसने कहा, इसमें दुख की क्या बात है? हिंदू-मुसलमान सब एक हैं!
यह आप देखते हैं? यह बाप ने ही धक्का दे दिया अनजाने। और हरिदास ने कहा, जब दोनों एक हैं, तो फिर क्या दुख की बात है? हिंदू हुए कि मुसलमान, अल्ला-ईश्वर तेरे नाम, सब बराबर, तो हरिदास गांधी कि अब्दुल्ला गांधी, इसमें पीड़ा क्या है?
मगर पीड़ा गांधी को हुई।
गांधी स्वतंत्रता की बात करते हैं, लेकिन अपने बेटों पर बहुत सख्त थे, और सब तरह की परतंत्रता बना रखी थी। तो जो-जो चीजें गांधी ने रोकी थीं, वह-वह हरिदास ने कीं। मांस खाया, शराब पी, वह-वह किया। क्योंकि अगर स्वतंत्रता है तो फिर इसका मतलब क्या होता है स्वतंत्रता का? यह मत करो, यह मत करो, यह मत करो–और स्वतंत्रता है?
तो यह तो बात वैसी ही हो गई, जैसे हेनरी फोर्ड कहा करता था। हेनरी फोर्ड के पास पहले काले रंग की ही गाड़ियां थीं, कारें थीं। और कोई नहीं थीं। पर वह अपने ग्राहकों से कहता था, यू कैन चूज एनी कलर, प्रोवाइडेड इट इज़ ब्लैक। कोई भी रंग चुनो, काला होना चाहिए बस।
क्या मतलब हुआ? स्वतंत्रता है पूरी और सब तरह की परतंत्रता नियम की बांध दी–इतने बजे उठो, और इतने बजे सोओ, और इतने वक्त प्रार्थना करो, और इतने वक्त…। और यह खाओ और यह मत पीयो। सब तरफ से जाल कस दिया, और स्वतंत्रता है पूरी! तो हरिदास ने, जो-जो गांधी ने रोका था, वह-वह किया।
अगर कहीं कोई अदालत है, तो उसमें हरिदास अकेला नहीं फंसेगा। कैसे अकेला फंसेगा? क्योंकि उसमें जिम्मेवार गांधी भी हैं, बाप भी है।
ध्यान रखना, अगर बेटा आपका फंसा, तो आप बच न सकोगे। इतना ही कर लो कि बेटा ही अकेला फंसे, तुम बच जाओ, तो भी बहुत है। हटा लो हाथ अपने दूर और बेटे को कह दो, जो तुझे लगे, जो तुझे ठीक लगे! अगर तुझे दुख भोगना ही ठीक लगता है, तो ठीक है, दुख भोग! अगर तुझे पीड़ा ही उठाना तेरा चुनाव है, तो तुझे स्वतंत्रता है, तू पीड़ा ही उठा! हमें पीड़ा होगी तुझे पीड़ा में देख कर, लेकिन वह हमारी तकलीफ है। उससे तुझे क्या लेना-देना है! वह हमारा मोह है, उसका फल हम भोगेंगे; उससे तेरा कोई संबंध नहीं है।

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